पटाखे चलाने का मतलब पैसे खर्च करके बीमारी लेना

लुधियाना (राजकुमार साथी)। अकसर लोग खुशी प्रक्ट करने के लिए पटाखे चलाने को अच्छा समझते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि पटाखे चलाने का मतलब पैसे खर्च करके बीमारी लेना होता है। क्योंकि पटाखों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री से अस्थमा (सांस की बीमारी), आई बर्न (आंखों में जलन), एलर्जी और बहरापन (सुनने की क्षमता कम होना) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके साथ ही बर्न इंजरी का भी खतरा रहता है।

पटाखों में सीसा, पारा, लीथियम, आर्सेनिक और एंटीमनी जैसे घातक व प्रतिबंधित केमिकलों का इस्तेमाल होता है। इसी कारण सरकार हर बार पटाखों पर प्रतिबंध लगाती है, मगर पटाखा कारोबारियों के दवाब में यह प्रतिबंध सफल नहीं हो पाते। इस बार भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली, वाराणसी, भोपाल, कोलकाता, नोएडा, मुजफ्फरपुर, मुंबई, जम्मू, लुधियाना, पटियाला, गाजियाबाद, वाराणसी, कोलकाता, पटना, गया व चंडीगढ़ इत्यादि शहरों में पटाखे चलाने पर 30 नवंबर तक पूर्ण प्रतिबंध लगाया है।

जिन शहरों में नवंबर 2019 में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 51 से 100 के बीच था, वहां पर दीवाली और छठ पूजा पर शाम को 8 से 10 बजे तक पटाखे चलाने की छूट मिलेगी। उधर, राजस्थान सरकार ने कोरोना के कारण त्योहारों के दौरान पटाखों की बिक्री व चलाने पर पूर्ण पाबंदी लगाई है। दिल्ली सरकार ने 7 से 30 नवंबर तक हर तरह के पटाखों (ग्रीन पटाखे भी) पर पाबंदी लगाने की घोषणा की है।
वेस्ट बंगाल में काली पूजा, दिवाली और छठ के दौरान पटाखे बेचने और चलाने पर पूर्ण पाबंदी रहेगी। डॉक्टरों के मुताबिक भले ही सरकार ने ग्रीन पटाखे चलाने की मंजूरी दे दी है, लेकिन अगर ग्रीन पटाखे में से धुंआं निकलता है तो यह भी पूरी तरह सेहत के लिए खतरनाक है।